
हैलो दोस्तों, पंचायत वेब सीरीज का नाम सुनते ही मन में एक ऐसी देसी गाँव की तस्वीर बन जाती है, जहाँ पंचायत भवन में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ ज़िंदगी के छोटे-बड़े मसले सुलझाए जाते हैं। प्राइम वीडियो पर टीवीएफ की ये सीरीज़ अपने चौथे सीज़न के साथ लौटी है, और आठ एपिसोड्स की इस गाड़ी में फिर से फुलेरा गाँव की सैर करवाती है। हर बार की तरह इस बार भी हँसी, इमोशन और गाँव की सादगी का तड़का है, लेकिन क्या ये सीज़न पहले जैसा जादू बिखेर पाया? आइए, देखते हैं कि पंचायत 4 का मिज़ाज कैसा है।
पंचायत सीरीज़ 4 की कहानी – चुनावी चक्कर और गाँव का रस
सीज़न 4 की कहानी पिछले सीज़न के उस सस्पेंस के अंत से शुरू होती है, जहाँ प्रधान जी पर गोली चली थी। इस बार फुलेरा में चुनावी माहौल बना है। मंजू देवी की कुर्सी पर नज़रें गड़ाए भूषण उर्फ बनराकस की पत्नी मैदान में उतरती है। गाँव दो खेमों में बँट जाता है, और शुरू होता है वोटरों को रिझाने का मैदानी जंग। कोई गलियों में झाड़ू लिए सफाई का नाटक कर रहा है, तो कोई चाय-समोसे का लालच दे रहा है। इस सबके बीच सचिव जी, प्रह्लाद चा और बाकी गाँव वाले अपने-अपने रंग दिखाते हैं। कहानी में छोटे-मोटे ट्विस्ट आते हैं, जो कभी हँसाते हैं तो कभी सोचने पर मजबूर करते हैं। लेकिन कुल मिलाकर, ये सीज़न गाँव की छोटी-छोटी बातों को बड़े प्यार से पिरोता है, जैसे कोई पुरानी चिट्ठी जो पढ़ते वक्त दिल को छू जाए।
पंचायत के किरदारों का दिलकश जादू
पंचायत वेब सीरीज की जान है इसके किरदार, और इस बार भी सभी ने अपने रंग जमाए हैं। जितेंद्र कुमार का अभिषेक उर्फ सचिव जी गाँव और शहर के बीच की कशमकश में फँसा एक ऐसा लड़का है, जो अब फुलेरा को अपना-सा मानने लगा है। उनकी एक्टिंग में वो सहजता है, जो किरदार को असली बनाती है। रघुवीर यादव का प्रधान जी हर सीन में छा जाते हैं। उनकी कॉमिक टाइमिंग और इमोशन्स का मेल गज़ब का है। नीना गुप्ता की मंजू देवी इस बार और मज़बूत नज़र आईं, खासकर चुनावी सीन में। फैज़ल मलिक का प्रह्लाद चा दिल को छू लेता है, उनका एक सीन ऐसा है, जो आँखें नम कर देगा। दुर्गेश कुमार का बनराकस और अशोक पाठक का विनोद हँसी का तड़का लगाते हैं, लेकिन इस बार विनोद की एक्टिंग में गहराई भी दिखी। हर किरदार इतना ज़िंदा है कि लगता है, ये लोग कहीं हमारे गाँव में ही मिल जाएँगे।
पंचायत सीरीज़ 4 में कुछ खामिया
सच कहूँ तो इस सीज़न में वो पुराना वाला मसाला थोड़ा फीका लगा। पहले दो एपिसोड्स में कहानी थोड़ी सुस्त सी चलती है, जैसे कोई पुरानी साइकिल जिसे चलाने में वक्त लगे। कुछ सीन ज़रूरत से ज़्यादा खिंचे हुए लगे, और कहानी में वो गहराई कम दिखी, जो पहले सीज़न में थी। कुछ ट्विस्ट प्रेडिक्टेबल थे, जिसकी वजह से वो धमाका नहीं हुआ, जो टीवीएफ से उम्मीद की जाती है। इमोशन्स तो ठीक हैं, लेकिन स्टोरीलाइन में कहीं-कहीं कमी खलती है, जैसे कोई स्वादिष्ट सब्ज़ी जिसमें नमक थोड़ा कम पड़ गया हो।
मेरी राय इस सीज़न पर
पंचायत सीज़न 4 एक ऐसी चाय है, जो भले ही पहले जितनी कड़क न हो, लेकिन उसकी गर्माहट और सुकून अब भी बरकरार है। ये सीरीज़ उन लोगों के लिए है, जो गाँव की सादगी और अपनापन स्क्रीन पर जीना चाहते हैं। हँसी, ड्रामा और इमोशन्स का मेल इसे फैमिली के साथ देखने लायक बनाता है। हाँ, ये पहले सीज़न जितना दमदार नहीं, लेकिन फिर भी फुलेरा की गलियों में घूमने का मज़ा देता है। क्लाइमेक्स में जो हुआ, उसने सीज़न 5 के लिए उत्सुकता ज़रूर जगा दी है। मेरे लिए ये सीज़न एक हल्की-फुल्की सैर थी, जो दिल को छू गई, लेकिन थोड़ा और मसाला डाल सकता था।
रेटिंग
3.5/5
पंचायत सीज़न 4 फैमिली के साथ देखने के लिए एकदम परफेक्ट है। गालियाँ न के बराबर हैं, तो 16+ उम्र के लोग आराम से इसका मज़ा ले सकते हैं। अगर आपने अभी तक पंचायत सीज़न 4 नहीं देखा, तो देख डालिए दोस्तों। पंचायत का सीज़न 4 देखने के बाद कैसा लगा ये सीजन, ये कमेंट बाक्स में बताना न भूलें। अगर आप फिल्मी खबरों के शौकीन हो तो हमारे सोशल मीडिया को फालो करना न भूलें।
फिल्मी गूँज पर आपसे जल्द ही मिलूंगा कुछ धमाकेदार रिव्यू के साथ तब तक जय हिन्द जय फुलेरा!